-दिलीप मंडल
ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख अखबार सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड को लगता है कि भारतीय क्रिकेटरों के सेलेक्शन में जातिवाद चलता है। सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड ने आज खत्म हुए टेस्ट मैच में खेलने वाले क्रिकेटरों की एक गलत-सही टाइप की लिस्ट छापी है। आप लोग भी देख लीजिए :
ब्राह्मण - अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली, आर पी सिंह (?), इशांत शर्मा
जाट - युवराज सिंह
राजपूत - महेंद्र सिंह धोनी
मुसलमान - वसीम जाफर
सिख - हरभजन सिंह.
पूरी खबर के लिए सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड साइट के इस लिंक पर क्लिक कर लीजिए। इसके साथ एक और लेख पढ़ लीजिए, जो है तो चार साल पुराना, लेकिन क्रिकेट की जाति चर्चा में इसका जिक्र आ रहा है।
वैसे भारतीय क्रिकेट में जाति के आधार पर भेदभाव और दलित क्रिकेटर विनोद कांबली (54.20 का एवरेज और 227 का अधिकतम स्कोर) की सिर्फ 17 टेस्ट के बाद विदाई जैसी मार्मिक बातें छापने वाले सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड के संपादक को मैंने एक मेल डाला है। उसके कुछ हिस्से का हिंदी अनुवाद आपके लिए पेश हैं।
- क्या ये सच नहीं है कि यूरोपीय लोगों के आने से पहले ऑस्ट्रेलिया में एक सभ्यता थी। 1788 में वहां साढ़े तीन लाख से लेकर साढ़े लाख मूल निवासी रहते थे।
- यूरोपीय लोगों के आने के बाद उनकी संख्या घटने लगी और 1911 आते आते ये संख्या घटकर 30,000 रह गई।
- ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया द्वीप में 1803 में 8,000 मूल निवासी रहते थे। यूरोपीय लुटेरों के आने के 30 साल बाद उनकी संख्या 300 रह गई।
- ऑस्ट्रेलिया के दो सौ साल के इतिहास में मूल निवासियों के 100 से ज्यादा बड़े आखेट हुए हैं। उन्हें घेरकर, चुनकर हर तरह से मार डाला गया। नरसंहारों की खत्म न होने वाली लिस्ट देखें
- ये सिलसिला 1930 तक चला है। आदमी तब तक काफी सभ्य हो चुका था। और गोरे लोग तो खुद को सबसे सभ्य मानते हैं।
- आज ऑस्ट्रेलिया की जनगणना के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश की आबादी में सिर्फ ढाई प्रतिशत मूल निवासी हैं।
- लेकिन ऑस्ट्रेलिया की जेलों में 14 परसेंट लोग मूल निवासी हैं।
- ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासी कम उम्र में मरता है, उसके बेरोजगार रहने के चांस ज्यादा हैं। आंकड़े देखें
- इसलिए जाति का गणित कृपया हमें मत समझाइए। जाति से हम लड़ रहे हैं, जीत लेंगे। आप अपनी चिंता कीजिए।
ये तो है मेरे पत्र के कुछ प्वायंट। लेकन मुझे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से शिकायत है। उसमें दम नहीं है। वरना भारतीय टीम के प्रवक्ता को पूछना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया की टीम में कितने मूल निवासी हैं। लेकिन लगता है कि हमारे अपने घर के कंस्ट्रक्शन में काफी शीशा लगा है। इसलिए पत्थर उछालने का जोखिम हम नहीं ले सकते।
Custom Search
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Custom Search
3 comments:
कमाल है दिलीप जी इतनी सटीक,उम्दा जानकारी कैसे जुटा ली, और वो भी इतनी जल्द...अगर वो कमबख्त पढेंगे तो शर्म आनी चाहिये...टीवी में रहकर इतना लिखना प्रेरणा देता है...सोच रहा हू कि पूरे आर्टिकल का वीओ मारकर पैकेज बना दू..और साइन ऑफ मे आपके साथ अपना नाम दे दूं...हा हा हा..लेकिन मजा आया...
दीलिप जी,सटीक जवाब दिया आपने,इन कम्बख्तों ने क्रिकेट का सारा मज़ा किरकिरा कर दिया,एक समय इंजमामुल हक भी अच्छा जवाब दिया था कि तबसे डेरेल हेयर का दाग आज तक धुला नही है,श्रीलंका के साथ भी इन्होने माईन्ड गेम खेलने की कोशिश की थी.. और अब तो हद ही गई जब जब हरभजन के खिलाफ़ ऐसा निर्णय देकर उन्होने अपना असली रूप दिखा दिया है,आपने सटीक लिखा है,इनका असली चेहरा सबके सामने लाना ही होगा,वैसे मीडिया के दवाब में आकर बीसीसीआई कुछ कदम उठाए है पर देखना है इसका अंजाम क्या होगा वैसे पवार की नज़र आई सी सी के सर्वोच्च पद लगी हुई है,उनका ढुलमुल रवैया कही इस मुद्दे को अन्तर्राष्टीय स्तर पर कमज़ोर ना कर दे, आप ऐसे ही लिखते रहें !!
दिलीप भाई
शीशा हमारी सभ्यता और संस्कृति के निर्माण में तो बहुत ज्यादा नहीं लगा, लेकिन हमारी राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह शीशे की दीवारों के बीच ही कैद है. यही वजह है जो किसी भी गलत मुद्दे के खिलाफ हम दम्दारी से आवाज नहीं उठा पाते हैं. हालत यह है कि प्रिय रंजन दास मुंशी आज तस्लीमा से हाथ जोड़ कर माफी मांगने की बात कह रहे हैं. हजार बार हिन्दुओं की भावनाओं को हुसैन आहत कर चुके हैं उनसे आज तक यह अपेक्षा नहीं की गई. क्यों? क्या हिन्दुओं की भावनाएं भावनाएं नहीं है या हिन्दू कांग्रेसियों और संसदीय राजनीति के दलदल में फंसे तथाकथित कम्युनिस्टों की नजर में मनुष्य ही नहीं हैं? इसका जवाब उन भाजपाइयों के पास भी नहीं है जो हिंदुत्व की भट्ठी सुलगा कर उस पर रोटी सकने में लगे हैं. इसके पहले मनमोहन सिंह वामपंथी उग्रवाद यानी नक्सलियों को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बता चुके हैं. इस पर वामपंथियों तक ने कुछ नहीं कहा. मुस्लिम उग्रवाद, जिससे पूरी दुनिया खतरा महसूस कर रही है, उससे उन्हें कोई खतरा नहीं दिखता है. इसका नतीजा यह हो रहा है देश का आम शांतिप्रिय मुसलमान भी, जिसका उग्रवाद से कोई संबंध नहीं है, वह भी अपने ही देशवासियों की सहानुभूति खोता जा रहा है. आबादी की अधिकता को देश का सबसे बड़ा संकट बनाने वालों के बीच ऐसे राजनेता भी है जो कहते हैं कि मुसलमान जितने चाहें बच्चे पैदा करें, उनका खर्च सरकार उठाएगी. समझना मुश्किल हो रहा है कि ऐसे गैर जिम्मेदार राजनेताओं के नेतृत्व में यह देश जा कहाँ रहा है?
Post a Comment