Custom Search

Thursday, January 24, 2008

मीडिया की अश्लील आम सहमति को तोड़ता है ब्लॉग

वेब दुनिया संपादक मंडल की सदस्य मनीषा पांडे ने मेरा एक इंटरव्यू मेल के जरिए किया। नीचे पढ़िए पूरा इंटरव्यू। मैंने इंटरव्यू के साथ में कुछ फुटकर नोट भेजे थे। आप भी देखिए:

- प्रिंट काफी हद तक एकालाप है, जबकि ब्लॉग संवाद है
- ब्लॉग पाठक को सक्रिय होने की आजादी देता है
- कुछ विषयों पर मीडिया में अश्लील किस्म की आम सहमति है
- ब्लॉग इस आम सहमति को तोड़ता है
- ब्लॉग के रंगमंच पर असली नायक और नायिकाओं का आना बाकी है
- मैच से पहले साइडलाइन की हलचल को कुछ लोग टूर्नामेंट मान बैठे हैं
- हिंदी ब्लॉग जगत में एक बड़ा विस्फोट होने वाला है
- ब्लॉग की ताकत है उसकी इंटरेक्टिविटी
- हिंदी ब्लॉगिंग को समाज में हिंदी की स्थिति से अलग करके नहीं देखा जा सकता
- हिंदी साहित्य का वाटर टाइट कंपार्टमेंट नहीं बचेगा
- ब्लॉग हिंदी भाषा को व्याकरण की जकड़न से मुक्त कर रहा है
- ब्लॉग और इंटरनेट पर हिंदी का आना शुभ है
- भाषा को लोकतांत्रिक होने की ताकत देगा ब्लॉग
- ब्लॉग का रोमांचक दौर आने वाला है, सीट बेल्ट बांध कर तैयार रहिए

अब पढ़िए पूरा इंटरव्यू -

ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच
ब्लॉगर और पत्रकार दिलीप मंडल से वेबदुनिया की बातचीत

आप कब से ब्लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय हैं? हिंदी में ब्लॉग शुरू करने का ख्‍याल कैसे आया?

ब्लॉग की दुनिया से परिचय तो पुराना था। लेकिन इंग्लिश ब्लॉग के जरिए। हिंदी में ब्लॉगिंग हो रही है, ये तो पिछले दो साल से मालूम था, लेकिन दूर से ही उन्हें देख रहा था। दिलचस्पी 2007 के बीच वाले महीनों में बढ़ी। जुलाई, 2007 में मोहल्ला पर "कामयाब लोगों का अलगाववाद" मेरी पहली पोस्ट थी। मेल के जरिए मोहल्ला के मॉडरेटर अविनाश को भेजी और उन्होंने धूमधाम से छाप दी। अगली पोस्ट थी "कब था पत्रकारिता का स्वर्णकाल" उस पर प्रतिक्रियाओं का लंबा सिलसिला चला (कई-कई हजार शब्द लिख डाले गए होंगे)। कुछ दिन तक तो मोहल्ला के लिए लिखता रहा, फिर ख्याल आया कि अपना भी एक मंच बना ही लिया जाए।

इस विधा के बारे में आपकी शुरुआती प्रतिक्रिया क्या थी?

ब्लॉग को लेकर ये तो मालूम था कि अभी इससे पैसे नहीं आने वाले हैं। चूंकि मेरा लगभग सारा लेखन प्रिंट और रेडियो के लिए रहा है, तो बिना पैसे का लेखन कुछ जमा नहीं। लेकिन ये एहसास हमेशा था कि शुरुआती दौर होने के बावजूद ब्लॉग एक ताकतवर माध्यम है। इसकी दूसरी बड़ी ताकत है कि ये पाठक को सक्रिय होने की आजादी देता है। कहने को तो ये आजादी तो अखबारों और पत्रिकाओं में भी है। लेकिन पाठकों की सक्रियता ज्यादा मूर्त रूप में ब्लॉग में ही दिखती है। साथ ही प्रिंट काफी हद तक एकालाप है, जबकि ब्लॉग संवाद है।

आपके कौन-कौन से ब्लॉग हैं?

प्रणव प्रियदर्शी, अनुराधा और मैं, हम तीनों मिलकर रिजेक्टमाल नाम का ब्लॉग चलाते हैं। इसे अगस्त 2007 में बनाया गया है और नियमित न होने पर भी इसे हजारों पाठक मिले हैं। इसके अलावा मैं मोहल्ला, इयत्ता और कबाड़खाना-इन तीन ब्लॉग से जुड़ा हूं। लेखक की हैसियत से।

ब्लॉग पर लिखते हुए आप किन्हीं खास विषयों पर ही लिखते हैं। आप अपने विषय का चुनाव किस आधार पर करते हैं।

ब्लॉग पर लिखते समय कई बार मैं वो विषय चुनता हूं, जिनके लिए प्रिंट में जगह निकालना मुश्किल होता है। जाति व्यवस्था और पत्रकारिता पर मेरे लेख उसी श्रेणी में हैं। जाति पर मैं प्रिंट में लिखता रहा हूं, लेकिन ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच लगा। वेसे उनमें से कुछ लेख बाद में प्रिंट में भी छपे। इसके अलावा कई बार कुछ विषयों पर मीडिया में अश्लील किस्म की आम सहमति बन जाती है। वैसे समय में ब्लॉग का प्रयोग करता हूं/करना चाहता हूं।

पसंदीदा हिंदी ब्लॉग कौन-से हैं?

मोहल्ला मुझे पसंद है क्योंकि वहां लोकतांत्रिक स्पेस है। शब्दों का सफर मैं नियमित नहीं देख पाता, लेकिन चाहता हूं कि ये ब्लॉग सफल हो। सस्ता शेर और टूटी बिखरी सी, रवि रतलामी का हिंदी ब्लॉग, सारथी, भड़ास जैसे ब्लॉग पर नियमित नजर रहती है। हाशिया, पहलू जैसे ब्लॉग से सीखता रहता हूं।

हिंदी ब्लॉगिंग की वर्तमान स्थिति के बारे में आप क्या सोचते हैं?

हिंदी ब्लॉग की अभी शुरुआत हुई है। अभी जिस तरह की ब्लॉगिंग हो रही है उससे मुझे लगता है रंगमंच पर असली नायक और नायिकाओं का आना बाकी है। हिंदी ब्लॉग जगत में एक बड़ा विस्फोट होने वाला है। ऐसा मुझे लगता है और इसकी कामना भी है। खेल अभी शुरू होना है। अभी साइडलाइन की हलचल है, जिस कुछ लोग टूर्नामेंट मान बैठे हैं। वैसे शुरुआती दिनों में जो लोग जुटे और जुड़े हैं, उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

एक माध्यम के रूप में ब्लॉग अन्य माध्यमों (टीवी और प्रिंट) से किस तरह अलग है?

ब्लॉग की ताकत है उसकी इंटरेक्टिविटी। इस मायने में वो बाकी सभी संचार माध्यमों से अलग है। इसे आप ब्लॉग की बढ़त के तौर पर देख सकते हैँ।

क्या आप मानते हैं कि ब्लॉगिंग भविष्य की विधा है?

हिंदी में ब्लॉगिंग को लेकर मै आशावान तो हूं, लेकिन कुछ किंतु-परंतु भी हैं। दरअसल हिंदी में ब्लॉगिंग का भविष्य इस पर टिका है कि हिंदी का भविष्य कैसा है। खासकर कंप्यूटर के इस्तेमाल के संदर्भ में अगर हिंदी की ताकत बढ़ती है, तो इसका फायदा हिंदी ब्लॉगिंग को मिलेगा। मनोरंजन और दिल बहलाने के माध्यम के तौर पर हिंदी ब्लॉग के सफल होने की संभावना ज्यादा है। लेकिन यही बात ज्ञान-विज्ञान के बारे में नहीं कह सकते। दरअसल ब्लॉगिंग को समाज में हिंदी की स्थिति से अलग करके नहीं देखा जा सकता। साथ ही ये देखना होगा कि हिंदी बोलने वाली पट्टी में कंप्यूटर और इंटरनेट कितनी मजबूती से पैर जमाते हैं। इंटरनेट सस्ता होता है तो इसका फायदा भी हिंदी और हिंदी ब्लॉगिंग को होगा। इसमें ब्रॉडबैंड के विस्तार का भी महत्व है।

आने वाले समय में ब्लॉगिंग किस रूप में हमसे मुखातिब होगी?

- हजारों तरह के लाखों ब्लॉग होंगे। एक्साइटमेंट के लिए सीट बेल्ट बांध कर तैयार रहिए।

क्या ब्लॉगिंग पत्रकारिता पर भी असर डालेगी?

ब्लॉग के असर से कोई भी विधा अछूती नहीं रहेगी। पत्रकारिता, साहित्य, गीत, संगीत, नाटक हर जगह इसका प्रभाव दखेगा। वाटर टाइट कंपार्टमेंट में सुरक्षित और अलग थलग रहने की कल्पना करने वालों को झटका लगने वाला है।

क्या आने वाले समय में इंटरनेट और ब्लॉगिंग इलेक्‍ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर भारी पड़ सकते हैं?

इसकी भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी है। पश्चिम का अनुभव तो यही कह रहा है कि मास मीडिया में इंटरनेट का हिस्सा तेजी से बढ़ेगा। पश्चिम के कई मीडया हाउस के कुल राज्स्व का एक तिहाई से ज्यादा इंटरनेट से आ रहा है और ये हिस्सा बढ़ रहा है। भारत में भी ऐसा हो तो, आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लेकिन हिंदी में ऐसा होगा या नहीं, ये पक्के तौर पर कह पाना खतरनाक है। हिंदी समाज में इंटरनेट और हिंदी में इटरनेट जैसे विषय पर प्रवृत्तियां अभी साफ नहीं है।

क्या आपको लगता है कि ब्‍लॉगिंग से हिंदी भाषा का विकास होगा?

ब्लॉग और इंटरनेट पर हिंदी का आना शुभ है। अभी तक पांच सौ से एक हजार के प्रिंट ऑर्डर में फंसे हिंदी साहित्य के लिए ये पहली नजर में खतरे की बात लग सकती है। लेकिन साहित्य और इंटरनेट का रिश्ता बनता है, तो पाठक न होने की समस्या दूर हो जाएगी। इस मामले में कुछ रोचक होने की उम्मीद है। ब्लॉग हिंदी भाषा को व्याकरण की जकड़न से मुक्त कर रहा है। कई ऐसे लेखक बन रहे हैं, जिन्हें प्रिंट में अछूत मान लिया जाता है। भाषा को लोकतांत्रिक होने की ताकत देगा ब्लॉग। भाषाई शुद्धता के प्रचारकों को गहरी चोट लगने वाली है।
(वेब दुनिया से साभार)

3 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

आपकी बाकी बातों से सहमति है लेकिन भाषा के बारे में मैं अलहदा विचार रखता हूँ. लिखना पाप-पुण्य की किसी श्रेणी में आना चाहिए, ऐसा भी मंशा नहीं है. लेकिन भाषा की शुद्धता एक शर्त्त होनी चाहिए. मैं भाषाई शुचिता की बात नहीं कर रहा हूँ. इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भाषा संस्कृतनिष्ठ हो. लेकिन सरल भाषा में अपने विचार व्यक्त करना आना चाहिए और वह भी खड़ी बोली के व्याकरण में.

ब्लॉग पर देखने में आता है कि लोग ग़लत-सलत हिन्दी में लिखे जा रहे हैं. विषय-वस्तु चुनना उनकी अपनी तमीज़ है लेकिन भाषा की तमीज़ के बिना हिन्दी उस शक्ति के साथ ब्लॉग पर कभी खड़ी नहीं हो पायेगी जिसके लिए आपने कमर कसने की बात की है. गालिब का एक शेर है-
'क्या है जो कस के बांधिए मेरी बला टले,
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं.'

अगर भाषा की शुद्धता और तेवर पर ध्यान नहीं दिया गया तो लोगों को यह शेर पढ़कर उलाहना देने से कैसे रोक पायेंगे?

Anonymous said...

मुझे कहीं से पता चला था कि आप ब्लागिंग से उकता गये हैं. लेकिन यह बातचीत देखकर अच्छा लगा कि आप "ब्लागर" हो गये हैं.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

dileep, is vishay par bahas chalaane men koee gurej hai kya?

Custom Search