सरकार उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करना चाहती है जो कुष्ठरोगियों के इलाज में सक्रिय रहा। लेकिन बाबा आमटे के जीवन का ये एक पहलू भर था। देश में कहीं भी अन्याय हो रहा हो तो लोगों को अक्सर बाबा आमटे की याद आती थी। नर्मदा के विस्थापितों के आंदोलन में बाबा की भूमिका को लोग भुला नहीं पाएंगे। सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ उनकी मुखर आवाज हमेशा सुनाई देती थी। बाबा आमटे को दुनिया ऐसे शख्स के रूप में भी याद रखेगी जो हमेशा विचार को कर्म में लागू करने के लिए सक्रिय रहे।
सत्य के इस अभय अथक साधक को श्रद्धांजलि! सुनिए वैष्णव जन तो तैने कहिए...हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से।
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