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Friday, February 15, 2008

कलियुग के संजय उर्फ कल्लू चमार से दो बातें

ये आपकी पोस्ट में बार बार आ रहे "हम" कौन हैं संजय उर्फ कल्लू चमार जी। जो गाली देना जानते हैं और जो यदि गाली देने के लिए मुंह खोल दे तो मेरे कान फट जाएंगे और जिनका स्‍तर इतना गिरा हुआ नहीं है? चर्चा में इस कदर हिंसक होने की जरूरत क्यों हो रही है? कोई कान के नीचे दिए जाने पर खुश हो रहा है, कोई कान के पर्दे फाड़ने की धमकी दे रहा है। इतनी घबराहट किस बात की?

वैसे मैने पढ़ने वालों से यही निवेदन किया है कि आपके ब्लॉग की चर्चा को आपके ब्लॉग पर जाकर जरूर देखें। संदर्भ समझने के लिए ये जरूरी है। बात को तोड़ने-मरोड़ने वाले ऐसा नहीं करते।

बात पकड़नी हो तो पकड़िए, न चाहें तो मत पकड़िए। वर्तनी के नाम पर फुनगियां मत नोचिए, या चलिए वही कर लीजए। क्या आपकी स्थापना यही है कि मीडिया के भारतीय समाज की विविधता का न दिखना बेकार का मुद्दा है और इस पर बात नहीं होनी चाहिए। इस चर्चा को लेकर कुछ लोगों में सार्वजनिक भय का जो माहौल नजर आ रहा है, वो चौंकाने वाला है। मीडिया में आरक्षण नहीं आ रहा है दोस्तो। निश्चिंत रहिए। मीडिया में आरक्षण अमेरिका में भी नहीं है। वहां न्यूजरूम में जो डायवर्सिटी है वो मीडिया कॉरपोरेशन ने खुद किया है। अपने कारोबारी हित में। अमेरिका मे मीडिया में डायवर्सिटी की बहस पर आगे बात हो सकती है। चर्चा में बने रहिए। डरने की कोई जरूरत नहीं है।

मुझे पूरा यकीन है कि आप न्याय के साथ खड़े होंगे। न्याय की परिभाषा बेशक आपकी होगी। अजित जी की बात अब आपको मोहल्ला में सही रूप में दिख जाएगी। अशुद्धि का संशोधन कर लिया गया है। इसमें कोई साजिश नहीं है। इतना डरेंगे तो कैसे चलेगा?

1 comment:

Sanjay Karere said...

मैं बुंदेलखंड का रहने वाला हूं, यहां हम को सहजभाव में मैं की जगह इस्‍तेमाल किया जाता है. अब इसमें भी किसी सामंतवाद या अन्‍य वाद की बू सूंघने का कष्‍ट न करें. बुंदेलखंडी गुस्‍से में मैं की जगह हम का प्रयोग ज्‍यादा करता है. आपको समझ नहीं आया तो उसे करेक्‍ट कर के मैं ही पढ़ें. हम से आशय किसी गिरोह से नहीं है..... मैं अकेला हूं.
कान के नीचे देने वाली बात मेरे चिट्ठे पर आई एक टिप्‍पणी में है और कहने वाले का नाम वहां दिख रहा है. इसे मेरे ऊपर जबरन ठेलने का प्रयास नहीं करें. मेरे चिट्ठे पर मॉडरेशन नहीं है और कोई भी आकर कमेंट कर सकता है.
जिस भाषा में मुझसे बात की जा रही है, मैं उसी शैली में जवाब दे रहा हूं.
इस बात पर दृढ़ हूं कि यदि मीडिया में जातिवाद को आधार बना कर ऐसी बहस होगी तो मैं उसका समर्थन नहीं करूंगा.
रही बात चर्चा में बने रहने की तो आप ऐसा करने के लिए किसी को बाध्‍य नहीं कर सकते. और समझ लीजिए कि कोई भय नहीं है. कोई डर नहीं है. आपने बहस को गलत दिशा दी है. असल मुद्दे को छोड़कर मुझ जैसे सामान्‍य इंसान को जबर्दस्‍ती निशाना बनाने का श्रम क्‍यों कर रहे हैं.
आप आगे बढि़ए और अपनी बात कहिए. आपको इससे क्‍यों फर्क पड़ता है कि संजय इस बहस में शामिल है या नहीं? लेकिन सिर्फ इस बिना पर आप बहस को आगे बढ़ने से क्‍यों रोक रहे हैं.. क्‍योंकि कोई और इसमें शामिल नहीं हो रहा?
मुद्दे पर असहमति है और बहस के दौरान असभ्‍यता का विरोध है, सो कर रहे हैं और करते रहेंगे.

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