भारत में कम्युनिस्ट नामधारी पार्टियों के बारे में अरसे से कई लोगों में ये भ्रम रहा है कि ये पार्टियां अल्पसंख्यकों और कमजोर तबकों की विरोधी नहीं होती हैं। ऐसी किसी पार्टी की सदस्यता को अक्सर प्रगतिशीलता का पर्याय मान लेने की जिद होती है। ऐसी किसी पार्टी में थोड़ा या ज्यादा समय बिताने वाले भी जीवन भर इसी आधार पर प्रगतिशील कहलाते रहते हैं। लेकिन भारतीय संदर्भ में, खासकर पश्चिम बंगाल के हमारे अनुभव बता रहे हैं कि अल्पसंख्यक और वंचितों का हक मारने में वामपंथी कॉमरेड किसी और पार्टी से पीछे नहीं हैं। बल्कि बाकी पार्टियों को इस मामले में उनसे कुछ गुर सीखने को मिल सकते हैं।
आइए देखते हैं कैसे :
- मुसलमानों की आबादी 25 फीसदी, सरकारी नौकरियों में हिस्सा 2.1 फीसदी। उच्च पदों पर मुसलमान नदारद।
- देश में एससी-एसटी-ओबीसी मिलाकर सबसे कम आरक्षण किस राज्य में। पश्चिम बंगाल में।
- देश में सबसे कम ओबीसी आरक्षण कहां, पश्चिम बंगाल में और कहां।
- मंडल कमीशन की रिपोर्ट को किस राज्य ने सबसे बाद में लागू किया। क्या अब ये भी बताना होगा?
- देश में एससी छात्रों का सबसे ज्यादा ड्रॉप आउट रेट कहां? एक और अश्लील सवाल! आप जरूर वामपंथ विरोधी हैं, सांप्रदायिक हैं, बीजेपी या तृणमूल कांग्रेस या फिर नक्सलियों के एजेंट हैं, जातिवादी हैं, देश की एकता और अखंडता के दुश्मन हैं, कहीं आप अमेरिका के एजेंट तो नहीं।
25 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की हालत देश में सबसे बुरी है। ये बात काफी समय से कही जाती थी, लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा गठित सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का प्रमाण जगजाहिर कर दिया है। राज्य सरकार से मिले आंकड़ों के आधार पर सच्चर कमेटी ने बताया है कि पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार की नौकरियों में सिर्फ 2.1 फीसदी मुसलमान हैं। जबक केरल में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत लगभग बराबर है पर वहां राज्य सरकार की नौकरियों में साढ़े दस फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का पिछड़ापन सिर्फ नौकरियों और न्यायिक सेवा में नहीं बल्कि शिक्षा, बैंकों में जमा रकम, बैंकों से मिलने वाले कर्ज जैसे तमाम क्षेत्रों में है।
साथ ही पश्चिम बंगाल देश के उन राज्यों में है, जहां सबसे कम रिजर्वेशन दिया जाता है। पश्चिम बंगाल में दलित, आदिवासी और ओबीसी को मिलाकर 35 प्रतिशत आरक्षण है। वहां ओबीसी के लिए सिर्फ सात फीसदी आरक्षण है। मौजूदा कानूनों के मुताबिक, मुसलमानों को आरक्षण इसी ओबीसी कोटे के तहत मिलता है। पश्चिम बंगाल देश के उन राज्यों में है, जहां मंडल कमीशन की रिपोर्ट आखिर में लागू की गई और पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार अरसे तक ये कहती रही कि राज्य में कोई पिछड़ा नहीं है।
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद से ही पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बौद्धिक जगत में हलचल मची हुई है। इस हलचल से सीपीएम नावाकिफ नहीं है। कांग्रेस का तो यहां तक दावा है कि 30 साल पहले जब कांग्रेस का शासन था तो सरकारी नौकरियों में इससे दोगुना मुसलमान हुआ करते थे। सेकुलरवाद के नाम पर अब तक मुसलमानों का वोट लेती रही सीपीएम के लिए ये विचित्र स्थिति है। उसके लिए ये समझाना भारी पड़ रहा है कि राज्य सरकार की नौकरियों में मुसलमान गायब क्यों हैं।( जारी)
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1 comment:
kabhi to kuch dhang ka likha karo yaar, hamesha aarakshan aur dalit ke piche pade rahte ho sir ji
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