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Saturday, February 23, 2008

चोखेर बाली की मौत की कामना करने वालों से...

-दिलीप मंडल

पिछले दिनों मैं और आर अनुराधा एक प्रदर्शनी देखने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर गए थे। प्रदर्शनी उस महिला ने लगाई थी, जो मेरी जानकारी में आज के समय की सबसे बहादुर औरतों में एक है। प्रदर्शनी बच्चों के बारे में थी, बच्चों के फोटोग्राफ्स की प्रदर्शनी। बदलते समय के साथ बच्चों के बदलते बचपन की कहानी। वहीं अनुराधा को ख्याल आया कि फोटो जर्नलिस्ट सर्वेश की कहानी अखबारों में और ब्लॉग पर शेयर की जानी चाहिए। और जानते हैं इस कहानी को जिस एक ब्लॉग पर डालने की बात सबसे पहले दिमाग में आई वो ब्लॉग कौन सा है? वो ब्लॉग है - चोखेर बाली। वो कहानी चोखेर बाली में छपी।

अब कुछ लोग चाहते हैं कि चोखेरबाली का अंत हो जाए। वो साफ-साफ कह नहीं रहे हैं, पर उनकी आवाज का चौतरफा शोर ब्लॉग में गूंज रहा है। कृपया उन्हें सफल न होने दें। ईश्वर पर यकीन है तो ईश्वर के लिए और खुद पर यकीन है तो खुद के लिए, कृपया कामयाब होकर दिखाएं। ऐसे हमलों से भागेंगी तो कहां जाकर छिपेंगी। रागदरबारी में कहा गया है न कि शिवपालगंज कहां नहीं है। कहां भागोगे। और भागना क्यों। भागने का समय तो उनका है जो आपकी मौत का ख्वाब बुन रहे हैं।

आज मैने उस फ्लोर को देखा जहां मैं काम करता हूं। वहां आधी आबादी की लगभग आधी उपस्थिति देखने के बाद मुझे यकीन हो गया है कि चोखेर बाली की हार नहीं होगी। आईसीआईसीआई के टॉप मैनेजमेंट में पांच में तीन पदों पर महिलाओं को देखने और ऐसे उदाहरणों की बढ़ती संख्या को देखने के बाद चोखेर बाली की जीत का यकीन पक्का हो जाता है। 21वीं सदी तो चोखेर बाली की जीत की सदी है।

ऐसे हमले कबाड़खाना पर हुए। दो-एक मामले और भी जानता हूं। कबाड़खाना बंद हुआ। हम सबके आग्रह से फिर खड़ा हुआ और आज मजबूत कदमों से उसे चलता हुआ आप सब देख रहे हैँ। मेरे खिलाफ ब्लॉग में जितने हमले हुए - निजी, अश्लील, गंदे, उसकी क्या कोई और मिसाल है। लेकिन क्या मैं अपनी हार पर किसी और को खुश होने का मौका दूंगा? क्या मैं इसलिए लिखना बंद कर दूं कि कुछ लोग मुझे चोखेर बाली समझ रहे हैं?

अगर मेरा लिखा पोंगापंथियों, जातिवादियों, ढोंगियों को खटकता है तो ये मेरे लेखन की सार्थकता है। मैने तो अपने जीवन में कभी वनिला या आलू बनने की कल्पना नहीं की है। मैं तो मानवता के विरोधियों के लिए मिर्च ही बनना चाहता हूं। मैं तो पलटकर आऊंगा। ज्यादा धमक के साथ। कबाड़खाना के अशोक भाई ने भी यही किया। आपके सामने भी पीछे भागने का रास्ता नहीं है।

और जो लोग चोखेर बाली का अंत देखना चाहते हैं, मैं उनकी हार की कामना करता हूं।

11 comments:

स्वप्नदर्शी said...

इतना मानती हू कि बिना समझे-बूझे मै चोखेर बाली मे कूद पडी, पर बाहर सोच समझ कर निकली हू. मेरे पास ब्लोग के लिये बहुत ही सीमीत समय है, और उस समय का बेहतर उपयोग किस तरह हो यही मेरी सोच का केन्द बिन्दु है.
बाकी जीवन मे कई तरह के प्रयोग चलते रहते है, इसे भी इसी स्पिरिट से लिया जाय.
मेरी शुभ्कामानाये भी चोखेर बाली के साथ है. फिल्हाल एक -दो लोगो के आने जाने से किसी सामूहिक प्रयास की मौत नही होती. एक जायेगा तो दस नये आयेंगे.

और कोई भी सामूहिक प्रयास अंतिम प्रयास भी नही होता. उम्मीद है कि चोखेर बाली जैसे अभी कई प्रयास ब्लोग मे होंगे.

Ashish Maharishi said...

साहब मुझे तो लगता है कि चोखेर बाली को फालतू की बातों पर कान ही नहीं देना चाहिए, बस धीरे धीरे अपने लक्ष्‍य की ओर बढ़े। कई ब्‍लॉगरों के सामने चोखेर बाली एक चुनौती बन कर उभरी है, जो कि अच्‍छी बात है

दिलीप मंडल said...

स्वपनदर्शी की बात मुझे सही लगती है।

विखंडन said...

भाई हम भी यही मानते की चोखेर बाली क्या किसी भी ब्लोग की मौत की कामना नही करनी चाहिए । जितने ज्याद ब्लोग उतने ही विचार ओर जितने ज्याद विचार उतना ही विम्रश का मजा आएगा । ओर अगर किसी के विचार से सहमत नही है तो उसे वैचारिक स्तर ही ज्वाब देना चाहिए न की खुद या उसे वहा से भगाने की कोशिश करे ओर न ही जिस व्यक्ति , स्त्री या फिर पुरुष , को कोसना शुरु कर दे।

दिलीप मंडल said...

किसी भी ब्लॉग की मौत की कामना नहीं करनी चाहिए - सही कहा है।

मसिजीवी said...

ऑंख में कुछ चुभता है तो तकलीफ तो होती ही है होने दीजिए...सच भी चुभता है उसे भी चुभने दें।

एक बात स्‍वप्‍नदर्शी से मुझे नहीं लगता कि जो एक दो मित्र किसी भी वजह से फिलहाल चोखेरबाली से अलग हो रहे हैं उन्‍हें कोई गलत स्पिरिट में ले सकता है...न केवल उन्‍हें ऐसा करने का पूरा हक है वरन उनका ऐसा करना इसी चोखेरबाली स्पिरिट को ही दिखाता है। वे जहॉं या जिस भी रूप में विमर्श को जारी रखेंगीं यह इसी भावना का ही प्रसार होगा। उनका खुलकर अपनी बात कहने का जज्‍बा भी ता चोखेरबाली भावना का ही हिस्‍सा है। कम से कम एक पाठक के रूप में मुझे तो ऐसा ही लगता है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

दिलीप भाई। परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है। जो मरेगा वह अपनी कमजोरियों के कारण और जो जिएगा,फलेगा-फूलेगा अपनी खूबियों के कारण। आप तो मानते हैं न कि अन्तर्वस्तु ही प्रमुख है। वाद प्रतिवाद न होगा तो संवाद कहाँ से आएगा। बस इतनी कोशिश बनी रहे कि संवाद न टूटे। मन्थन से ही अमृत और विष की अलग अलग पहचान बनेगी।

सुजाता said...

दिलीप जी
आप की और बहुतों की शुभकामनाएँ साथ हैं । धक्के से चोखेर बाली और मज़बूत होकर निकलेगी । मरेगी नही । क्योंकि यह एक सामूहिक ब्लॉग है इसलिए सामूहिक ब्लॉग आत्महत्या नही कर सकता । और हत्या तो उसकी हो ही नही सकती ।और यह तो अंतत: स्वप्नदर्शी जी ने भी मान लिया कि यह एक सामूहिक ब्लॉग है :-) उनकी शुभकामनाओं का हृदय से सम्मान करती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि वे बनी रहें । धन्यवाद !!

स्वप्नदर्शी said...

एक और बात, चोखेर बाली की शुरुआत औरतो के पहले सामूहिक ब्लोग की तरह हुयी थी,
पर अब ये सिर्फ एक सामूहिक ब्लोग बचा है, जिसका संचालन सुजाता कर रही है.

दिलीप मंडल said...

औरतों का ब्लॉग और कम्युनिटी ब्लॉग जिसमें मेन मॉडरेटर औरत हो, दोनों के लिए ही और न जाने कितने ही और वेरायटी के लिए ब्लॉग में जगह है। चोखेर बाली के बारे में मेरी कल्पना ऐसे कम्युनिटी (पोस्ट करने का अधिकार सभी सदस्यों के पास हो, तो वो कम्युनटी ब्लॉग बन जाता है)ब्लॉग की थी, जहां आधुनिक स्त्री विमर्श के लिए जगह होगी। चोखेर बाली क्या बनेगा, इस बारे में किसी के भी विचार हो सकते हैं, लेकिन ये बनेगा वही, जो आप चाहती हैं।

बहरहाल जमकर लिखिए अपनी कामयाबी की, संघर्ष की, गुस्से की और पीड़ा की और प्यार दुलार की कहानियां। यहां नहीं तो कहीं और सही, कहीं और नहीं तो कहीं और सही।

किसी के आने जाने से फर्क सचमुच नहीं पड़ता है, बस थोड़ी देर के लिए मन कड़वा हो जाता है। आप लोग जो भी करना चाहें, उसके लिए शुभकामनाएं।

Anonymous said...

कुछ लोग चाहते हैं कि चोखेरबाली का अंत हो जाए। कहना कितना सही हैं पता नहीं क्योकि जो है ही नहीं उसका अंत कौन और क्यों चाहेगा
http://mujehbhikuchkehnahaen.blogspot.com/2008/02/blog-post_24.html

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